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अध्याय तीन
श्लोक

न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्य पुरुषोऽश्नुते ।
न च संन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति ॥४॥

शब्दार्थ :

न - नहीं ; कर्मणाम् - नियत कर्मों के; अनारम्भात् - न करने से; नैष्कर्म्यम् - कर्मबन्धन से मुक्ति को; पुरुष: - मनुष्य; अश्नुते - प्राप्त करता है; न - नहीं; च - भी; संन्यसनात् - त्याग से; एव - केवल; सिद्धिम् - सफलता; समधिगच्छति - प्राप्त करता है।

भावार्थ :

न तो कर्म से विमुख होकर कोई कर्मफल से छुटकारा पा सकता है और न केवल संन्यास से सिद्धि प्राप्त की जा सकती है।

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