अध्याय तीन
श्लोक
श्लोक
नियतं करु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः ।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मणः ॥८॥
नियतम् - नियत; कुरु - करो; कर्म - कर्तव्य; त्वम् - तुम; कर्म - कर्म करना; ज्यायः - श्रेष्ठ; हि - निश्र्चय ही; अकर्मण: - काम न करने की अपेक्षा; शरीर - शरीर का; यात्रा - पालन, निर्वाह; अपि - भी; च - भी; ते - तुम्हारा; न - कभी नहीं; प्रसिद्धयेत् - सिद्ध होता; अकर्मणः - बिना काम के ।
भावार्थ :अपना नियत कर्म करो, क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है। कर्म के बिना तो शरीर निर्वाह भी नहीं हो सकता ।