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अध्याय चार
श्लोक

न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा ।
इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते ॥१४॥

शब्दार्थ :

न - कभी नहीं; माम् - मुझको; कर्माणि - सभी प्रकार के कर्म; लिम्पन्ति - प्रभावित करते हैं; न - नहीं; मे - मेरी; कर्म-फले - सकाम कर्म में; स्पृहा - महत्त्वाकांक्षा; इति - इस प्रकार; माम् - मुझको; यः - जो; अभिजानाति - जानता है; कर्मभिः - ऐसे कर्म के फल से; न - कभी नहीं; बध्यते - बँध पाता है ।

भावार्थ :

मुझ पर किसी कर्म का प्रभाव नहीं पड़ता, न ही मैं कर्मफल की कामना करता हूँ । जो मेरे सम्बन्ध में इस सत्य को जानता है, वह कभी भी कर्मों के पाश में नहीं बँधता ।

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