रजिस्टर वेदासहिंदी
वेदासहिंदी
लॉगिन
होम क्वोट्स बुक्स टॉप ब्लोग्स ब्लोग्स अबाउट कांटेक्ट ब्लॉग लिखे
  • होम≻
  • बुक्स≻
  • श्रीमद्भगवद्गीता≻
  • अध्याय चार≻
  • श्लोक 20
अध्याय चार
श्लोक

त्यक्त्वा कर्मफलासङग नित्य तृप्तो निराश्रयः ।
कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किञ्चित्करोति सः ॥२०॥

शब्दार्थ :

त्यक्त्वा - त्याग कर; कर्म-फल-आसङम् - कर्मफल की आसक्ति; नित्य - सदा; तृप्तः - तृप्त; निराश्रयः - आश्रयरहित; कर्मणि - कर्म में; अभिप्रवृत्तः - पूर्ण तत्पर रह कर; अपि - भी; न - नहीं; एव - निश्र्चय ही; किञ्चित् - कुछ भी; करोति - करता है; सः - वह ।

भावार्थ :

अपने कर्मफलों की सारी आसक्ति को त्याग कर सदैव संतुष्ट तथा स्वतन्त्र रहकर वह सभी प्रकार के कार्यों में व्यस्त रहकर भी कोई सकाम कर्म नहीं करता ।

होम क्वोट्स बुक्स टॉप ब्लोग्स ब्लोग्स
अबाउट । कांटेक्ट । ब्लॉग लिखे । साइटमैप



नियम एवं शर्तें । प्राइवेसी एंड पालिसी