अध्याय चार
श्लोक
श्लोक
सर्वाणीन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि चापरे ।
आत्मसंयमयोगग्नौ जुह्वति ज्ञानदीपिते ॥२७॥
सर्वाणि - सारी; इन्द्रिय - इन्द्रियों के; कर्माणि - कर्म; प्राण-कर्माणि - प्राणवायु के कार्यों को; च - भी; अपरे - अन्य; आत्म-संयम - मनोनिग्रह को; योग - संयोजन विधि; अग्नौ - अग्नि में; जुह्वति - अर्पित करते हैं; ज्ञान-दीपिते - आत्म-साक्षात्कार की लालसा के कारण ।
भावार्थ :दूसरे, जो मन तथा इन्द्रियों को वश में करके आत्म-साक्षात्कार करना चाहते हैं, सम्पूर्ण इन्द्रियों तथा प्राणवायु के कार्यों को संयमित मन रूपी अग्नि में आहुति कर देते हैं ।