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अध्याय चार
श्लोक

नायं लोकोऽस्त्ययज्ञस्य कुतोऽन्यः कुरुसत्तम ॥३१॥

शब्दार्थ :

न - कभी नहीं; अयम् - यह; लोकः - लोक; अस्ति - है; अयज्ञस्य - यज्ञ न करने वाले का; कुत: - कहाँ है; अन्य: - अन्य; कुरु-सत्-तम - हे कुरुश्रेष्ठ ।

भावार्थ :

हे कुरुश्रेष्ठ! जब यज्ञ के बिना मनुष्य इस लोक में या इस जीवन में ही सुखपूर्वक नहीं रह सकता, तो फिर अगले जन्म में कैसे रह सकेगा?

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