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अध्याय पाँच
श्लोक

संन्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः ।

योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति ॥६॥

शब्दार्थ :

संन्यासः - संन्यास आश्रम; तु - लेकिन; महाबाहो - हे बलिष्ठ भुजाओं वाले; दुःखम् - दुख; आप्तुम् - से प्रभावित; अयोगत: - भक्ति के बिना; योग-युक्तः- भक्ति में लगा हुआ; मुनि: -चिन्तक; ब्रह्म - परमेश्वर को; न चिरेण - शीघ्र ही; अधिगच्छति – प्राप्त करता है।

भावार्थ :

भक्ति में लगे बिना केवल समस्त कर्मों का परित्याग करने से कोई सुखी नहीं बन सकता । परन्तु भक्ति में लगा हुआ विचारवान व्यक्ति शीघ्र ही परमेश्वर को प्राप्त कर लेता है ।

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