लापरवाही पूर्वक किए गए जप का फल बिलकुल ही ऐसा होता है जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है : बरसों तक जप करके भी हृदय में परिवर्तन नही आता क्यूँकि वो हृदय में गया ही नही तो उसका प्रभाव कहाँ दिखेगा। • रामानन्द दास
यदि पति उत्कृष्ट श्रेष्ठ हो और पत्नी पतिव्रता, तो घर स्वर्ग बन जाता है। • श्रील प्रभुपाद
जिस व्यक्ति की श्रीकृष्ण एवं गुरु में दृढ़ श्रद्धा होती है, उसके हृदय में वैदिक ज्ञान का सार स्वतः उजागर हो जाता है। • रामानन्द दास
श्री कृष्ण के प्रति आकर्षण होना, इसका अर्थ है भौतिक जगत में व्याप्त आकर्षणों के प्रति रुझान कम हो जाना। आध्यात्मिक जीवन में उन्नति को परखना हो तो व्यक्ति को देखना चाहिए, कि वह भौतिक जीवन में व्याप्त आकर्षणों से स्वयं को कितना दूर रख पाया है। • श्रील प्रभुपाद
प्रत्येक जीव का उद्देश्य परमात्मा के रूप में सभी के हृदय में विराजमान भगवान की आज्ञा का पालन करना है। जब मन बहिरंगा माया शक्ति द्वारा गुमराह होता है, तो व्यक्ति भौतिक क्रिया-कलापों में उलझ जाता है। • रोमपाद स्वामी
ध्यान आधुनिक और शहरी जीवन से आने वाले तनावों से राहत का एक बड़ा ज़रिया है। • रोमपाद स्वामी
पूरी तरह से भगवान श्री हरि के चरण कमलों का आश्रय लिए बिना आत्मिक शांति का कोई सवाल ही नहीं है। • रामानन्द दास
वैराग्य कृष्ण के प्रति आसक्ति का उप-उत्पाद है। • रोमपाद स्वामी
जिसकी बुद्धि देहात्म-बोध में लगी रहती है और जो यह सोचता है कि, “मैं यह शरीर हूँ" वह कुत्तों तथा सियारों का उपयुक्त भोजन है। परम भगवान् ऐसे व्यक्ति पर कभी कृपा नहीं करते।" (चै.चरि. मध्य लीला ६.२३५) • रामानन्द दास
प्रतिकूल विचारो या भय का मन के धरातल पर आना यह सूचित करता है कि मन सही तरह से सकारात्मक भक्ति की साधना में संलग्न नहीं है। • रोमपाद स्वामी
जब व्यक्ति विनम्र पद ग्रहण करता है तो वह व्यक्ति दुविधाओं से परेशान नहीं होता। • रोमपाद स्वामी
विनम्रता तब शुरू होती है जब हम वास्तविकता तक पहुंचने का सच्चा प्रयास करते है। • रोमपाद स्वामी
हमारा ध्यान हमेशा यह होना चाहिए कि हम अपने आध्यात्मिक जीवन को कैसे निभा रहे हैं। यह बहुत सरल है। हम कड़ाई से नियामक सिद्धांतों का पालन करते हैं और न्यूनतम सोलह माला का जप करते हैं। वही हमें बचाएगा। • श्रील प्रभुपाद, लॉस एंजिल्स, 15 जून, 1972
हमें नहीं पता कि हमारा यह शरीर कब साथ छोड़ देगा, इसलिए तुरंत कृष्ण भावनामृत में जुड़ें और तदनुसार कार्य करें। • रोमपाद स्वामी
हम एक सामाजिक प्राणी है और हमारी जरूरतों में से एक है प्रेम देना और प्रेम प्राप्त करना। • रोमपाद स्वामी
किसी व्यक्ति को हमारी इच्छा के अनुसार बदलने के बजाय वो जैसे भी है हमको उन्हें वैसे ही स्वीकार करना चाहिए। • रोमपाद स्वामी
राधा और कृष्ण के साथ अपने आंतरिक संबंध को मजबूत करना। • रोमपाद स्वामी
"वर्णाश्रम धर्म का उद्देश्य अपने गुण और कर्म के अनुसार अर्जित वर्ण और आश्रम में रहते हुए पूरे अधिकार से भगवद्भक्ति प्राप्त करना है।” • रामानन्द दास
भगवद्गीता एक बहुपठित आस्तिक विज्ञान है जो गीता-महात्म्य में सार रूप में दिया हुआ है। इसमें यह उल्लेख है कि मनुष्य को चाहिए कि वह श्रीकृष्ण के भक्त की सहायता से संवीक्षण करते हुए भगवद्गीता का अध्ययन करे और स्वार्थ प्रेरित व्याख्याओं के बिना उसे समझने का प्रयास करे। ( तात्पर्य, श्रीमद्भगवद्गीता 1.1 ) श्री श्रीमद ए. सी भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद
हमारा कर्तव्य है कि, हम स्वयं कृष्ण भावजाभावित बनें, आध्यात्मिक जीवन में प्रगति करें, तथा दूसरों को भी प्रचार करें कि कैसे वे इस अवसरका लाभ लेकर अपने जीवन की पूर्ण सिद्धि के स्तर तक पहुँच सकते हैं। • श्रील प्रभुपाद
एक अध्यात्मिक गुरु का होना, किसी फ़ैशन के समान नहीं होना चाहिए कि लोग सोचें कि "मेरा भी अध्यात्मिक गुरु होना चाहिए।" ये गलता है। हमें जीवन की उच्च परिपूर्णता के स्तर को जानने के लिए जिज्ञाशु होना चाहिए, जीवन के परम सत्य जानने की उत्कंठा से प्रेरित होकर ही हमें एक अध्यात्मिक गुरु की खोज/शरण लेनी चाहिए। • श्रील प्रभुपाद
आध्यात्मिक गुरु अपने निजी विचारों का निर्माण नहीं करता। वह आध्यात्मिक गुरु नहीं। आध्यात्मिक गुरु वह होता है जो भगवन कृष्ण के शब्दों को यथार्थ व्यक्त करता है। • श्रील प्रभुपाद
ध्यान का लक्ष्य कृष्ण के साथ अपने संबंध को खोज निकलना है। मनन की कला शुद्ध भक्ति है। • रोमपाद स्वामी
सुख व्यक्ति के अहंकार की परीक्षा लेता है जबकि दुःख व्यक्ति के धैर्य की। दोनो परीक्षाओं में (द्वंदो से) उत्तीर्ण व्यक्ति का जीवन ही सफल जीवन है।
जन्म और मृत्यु के चक्र पर: सकाम कर्म व्यक्ति को कर्म से बांधते हैं और उसके बाद व्यावहारिक रूप में हमेशा के लिए जन्म और मृत्यु का चक्कर। • रोमपाद स्वामी